Friday, September 28, 2012

वित्तीय व्युत्पादनों का परिचय (Introduction To Financial Derivatives)

 वित्तीय व्युत्पादनों  का परिचय ( Introduction To Exchange Traded Financial Derivatives )

  Part 1. (Forward contracts) : 

  भाग 1. (वायदा संविदा ) :
 अनुबंध (Contracts)  एक प्रकार वित्तीय व्युत्पादन (Financial Derivatives ) के है जिन्हें हम बाजार में होने वाली मूल्यों की अनियमितता से अपने को अप्रभावित रखने के उपयोग करते हैं। व्युत्पादन (derivative ) वो होते हैं जो अपना मूल्य किसी दूसरी वस्तु के मूल्य से प्राप्त (derive ) करते हैं।

 सामान्यतः व्यापर करते समय हमें अनेक वस्तुवो के मूल्यों का भविष्य का अनुमान ठीक प्रकार से नही होता। जैसा की हम जानते हैं की बाज़ार  में वस्तुवों की कीमतों में नाना प्रकार के उतार चढ़ाव आते रहते हैं। अतः हमें ग्राहक (buyer) और विक्रेता (seller) दोनों तरह से नुकसान होने की संभावना रहती है। अगर आप ग्राहक हैं तो बाजार में मूल्य वृद्धि की हालत में आपको नुकसान उठाना पड सकता है . और अगर आप विक्रेता है तो आपको दामों में कमी की वजह से नुकसान हो सकता है।

इसे एक उदहारण के रूप में देखा जा सकता है , रामदीन जो की करतारपुर ग्राम का किसान है सामान्यतः गेहूं उगाता  है . गाँव से कुछ दूर कसबे में मुरारी लाल की आटा  मिल है। मुरारी लाल हर वर्ष रामदीन से गेहूं बाजार भाव पर खरीदता है . इस सौदे में दोनों का फायदा या  नुकसान गेहूं की कीमतों पे निर्भर करता है . अगर गेहूं की कीमतें ज्यादा हैं तो रामदीन को ज्यादा  फायदा होता है अन्यथा मुरारी लाल को।

इस प्रकार हम देखते हैं की सामान्य व्यवसाय में कीमतें घटने या बढ़ने का फायदा एक पक्ष को होता है।मान लीजिये किसी वर्ष गेहूं की पैदावार बहुत अच्छी होती है और बाजार में गेहूं की कीमतें बहुत कम हो जाती है तो इस अवस्था में हो सकता है की रामदीन को बहुत नुकसान उठाना पड़े और हो सकता है की वो अपनी खेती की लागत  को भी न निकल पाए। इसी प्रकार अगर मानसून ख़राब होने की वजह से किसी वर्ष मुरारी लाल को गेहूं आसानी से नहीं मिलता तो उसे अधिक दामों में ये खरीदना पड़  सकता है।
इस तरह का जोखिम प्रायः व्यापर में पाया जाता है . कई बार ये जोखिम ग्राहक और विक्रेता दोनों को उठाना  होता है . पर कई बार ये प्रकार के जोखिम सहने में व्यापारी असमर्थ होते है। उपरोक्त उदहारण में अगर गेहूं की कीमतें इतनी कम हो जाये की रामदीन खेती के लिए लिया गया अपना कर्ज न चूका पाए तो उसकी लिए परिस्थितियां मुश्किल हो सकती हैं।
 इस प्रकार की परिस्थिति से बचने के लिए हम वित्तीय अनुबंधों  (financial contracts )का उपयोग करते हैं .
उदहारण के लिए ऊपर के उदहारण में मान लीजिये की गेहूं की मौजूदा कीमत 28 INR प्रति किलोग्राम है . और रामदीन अभी गेहूं की हसाल उगने में लगा है जो की 6 महीने बाद तैयार होने वाली है . रामदीन को लगता है की इस वर्ष गेहूं की फसल की कीमतें कम होने वाली है फसल काटने के बाद। रामदीन को लगता है अगर उसकी फसल काटने के बाद वो गेहूं 30 INR प्रति किलोग्राम के भाव पे बेच पाया तो उसे फायदा हो सकता है। पर अगर गेहूं की कीमत 25 INR प्रति किलोग्राम हो गयी तो उसे नुकसान उठाना पड़  सकता है। मुरारी लाल से रामदीन एक समझौता करता है जिसके तहत रामदीन मुरारी लाल को 6 महीने के बाद 100 kg  गेहूं 30 INR प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचेगा बाजार में उसका मूल्य भले ही कुछ भी हो। अब मुरारी लाल इस समझौते को क्यूँ मानेगा ? क्यूंकि रामदीन से अलग मुरारी लाल को ये लगता है की गेहूं की कीमतें 6 माह पश्चात् बाजार में 35 INR प्रति किलोग्राम होने वाली है। इस समझौते के हिसाब से दोनों में से एक पक्ष को फायदा होगा और दुसरे को नुकसान। पर इस समझौते का एक फायदा ये है की दोनों पक्ष भविष्य की अपनी अनिश्चितता से चिंतामुक्त हो रहे हैं। मुरारी लाल को ये चिंता नही है की अगर बाजार में गेहूं नही रहा या बहुत महंगा रहा तो उसकी अत मिल बंद हो जाएगी और रामदीन को ये चिंता नही है की अगर गेहूं की कीमते बहुत कम हो गयी तो उसे बहुत कम कीमत मिलेगी उसकी फसल की और उसे नुकसान उठाना पड़ेगा।  सामान्यतः इस प्रकार के समझौतों में अनुबंध रकम समझौते के समय चुकानी पड़ती है।
अब मान लीजिये  6 महीने बाद गेहूं का मूल्य बाजार में 24 INR प्रति किलोग्राम हो जाता है। इस स्थिति में फायदा रामदीन को होगा। क्यूंकि वो मुरारी लाल को 30INR कग में गेहूं बेच रहा होगा। परन्तु यदि ये मूल्य 31 INR प्रति  किलोग्राम हो जाता है तो फायदा मुरारी लाल को है।क्युकी वो रामदीन से बाजार भाव से 1 रूपये कम में गेहूं ले रहा होगा। इस स्थिति में रामदीन को नुकसान अवश्य है पर ये उस स्थिति से बहुत अची है जबकि उसे 24 INR में बेचना पड़ता अगर उसने अनुबंध न किया होता।
 इस प्रकार के समझौते जिन्हें हम अनुबंध कहते हैं वायदा संविदा (forward contract ) के नाम से जाने जाते हैं। वायदा संविदा (forward contract)  में दो पक्ष होते हैं और दोनों पक्ष आपस में इस तरह का समझौता करते हैं। समझौते को निभाने की जिम्मेदारी इन दोनों पक्षों पे होती है। और दोनों आपस में वायदा संविदा(forward contract)  के नियमों का पालन करते हैं। दोनों पक्ष अनुबंध की शर्तों के हिसाब से नियत तिथि को अनुबंध (contract)  की शर्तों को पूरा करते हैं।
अगर रामदीन मुरारी लाल से 1 जनुअरी को समझौता करता है 1 जून को गेंहूँ बेचने के लिए किसी निश्चित मूल्य पे तो वो उस दिन नियत मूल्य पे नियत मात्रा में गेहूं उसे बेचेगा.

 वायदा संविदा (forward contract) में प्रयुक्त होने वाली विविध शब्दावली इस प्रकार है :

अग्रिम मूल्य (forward price ) ये वो मूल्य होता है जिसपे वायदा संविदा में वस्तु को खरीदने का अनुबंध किया जाता है। उदहारण के तौर पे ऊपर रामदीन ने मुरारी लाल से 30 INR  /kg  में गेहूं बेचने का करार किया है अतः अग्रिम मूल्य या फॉरवर्ड price 30 INR /kg  होगा।

मौजूदा भाव (spot price) : ये वो मूल्य होता है जो बाजार में उस वस्तु का मौजूदा मूल्य होता है . ऊपर के उदहारण में गेहूं का मौजूदा मूल्य 28INR  /kg उसका वस्मौजुदा मूल्य या स्पोट price है।

 संविदा खरीददार : (contract buyer ) : वो पक्ष जो मूल्य चूका कर अनुबंध खरीदता है। जैसे उपरोक्त उदहारण में मुरारी लाल अनुबंध खरीद रहा है।

संविदा या अनुबंध विक्रेता: (Contract seller ) : अनुबंध विक्रेता वो पक्ष होता है जो वस्तु को प्रदान करने का वायदा करता है। उपरोक्त उदहारण में रामदीन अनुबंध बेच रहा है।

अग्रिम संविदा लाभ (forward premium) : अनुबंद की समाप्ति के दिन जिस पक्ष को लाभ(प्रोफिट)  प्राप्त करने वाले पक्ष को जितना प्रोफिट होता है उसे फॉरवर्ड पेरेमियम या संविदा लाभ कहते हैं। ऊपर के उदहारण में गेहूं का मूल्य 24INR प्रति किलोग्राम होने पर


वायदा संविदा के प्रकार  (Types f forward contracts): ऊपर के उदहारण में हमने जिस प्रकार की वायदा संविदा की बात की उसमे समझौता गेहूं को लेके किया गया था। इसी प्रकार बाज़ार में इस तरह का अनुबंध हम अन्य तरह के व्यापर के लिए कर सकते है इसके कुछ उदहारण निम्नलिखित हैं :

मुद्रा वायदा संविदा (currency forward contract ): मुद्रा बाजार में हम मुद्रा विनिमय दर को लेके अनुबंध कर सकते हैं। मान लीजिये आज अमेरिकेन डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 45 रूपये है। कमल जो की अमेरिका से कंप्यूटर चिप्स मांगता है , को पेमेंट डॉलर में करना पड़ता है। अगर डॉलर की कीमत बढती है और ये 6 माह बाद  47 रूपये का हो जाता है तो कमल को 1 कंप्यूटर चिप के लिए ज्यादा रूपये देने पद सकते हैं। कमल ऐसी हालत में किसी दूसरी पार्टी के साथ ऐसे अनुबंध में जा सकता है जो की 6 माह पश्चात् भी उसे डॉलर 45 रूपये में देने का वादा कर सके।

वस्तु वायदा संविदा (commodity forward contract) : जब संविदा किसी वस्तु को लेके की जाती है तो उसे वास्तु वायदा संविदा कहते है। रामदीन और मुरारी लाल के उदहारण में वो एक वास्तु संविदा करते है। 

शेयर वायदा संविदा (stock forward contract) : जब दो पक्ष शेयर खरीदने या बेचने को लेके किसी अनुबंध में जाते हैं तो वो शेयर वायदा संविदा करते हैं। मन लीजिये रमण शाह के पास इनफ़ोसिस के 100 शेयर हैं और वो इन्हें बेचना चाहता है।इसकी बाजार में कीमार 2500 INR प्रति शेयर है। यदि रमण इन शेयरों को 6 माह बाद 2600 में बेचना चाहता है तो किसी ऐसे पक्ष के साथ वो अनुबंध में जा सकता है जो उस समय इस मूल्य में इसे खरीदने को तैयार हो।

आगे अपनी दूसरी पोस्ट में मैं वायदा अनुबंध (Future Contract) की व्याख्या करूँगा। और आगे आने वाली पोस्ट्स में फॉरवर्ड कोन्त्रक्ट(forward contract) यानि वायदा संविदा के मूल्य निर्धारण (price valuation ) के बारे में लिखूंगा।